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"जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर

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(नवगीत / कविताएँ)
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|विविध=विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए लगभग ३० पुस्तकों का संपादन, ’हाइकु दर्पण’ (हाइकु पत्रिका)- का संपादन एवं प्रकाशन।
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|'अनन्य' (भारतीय कौंसलावास न्यूयार्क, अमेरिका से प्रकाशित) पत्रिका का संपादन।
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__NOTOC__
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====कविता-संग्रह====
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* '''[[इन्द्र धनुष / जगदीश व्योम]]'''
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* '''[[भोर के स्वर / जगदीश व्योम]]'''
 +
* '''[[इतना भी आसान कहाँ है / जगदीश व्योम]]'''
  
माँ कबीर की साखी जैसी
+
====नवगीत / कविताएँ====
तुलसी की चौपाई-सी
+
* [[अपने घर के लोग / जगदीश व्योम]]
माँ मीरा की पदावली-सी
+
* [[जंग लड़ेंगे हम / जगदीश व्योम]]
माँ है ललित स्र्बाई-सी।
+
* [[जाने क्या बतियाते पेड़ / जगदीश व्योम]]
 +
* [[पानी को पानी कह पाना / जगदीश व्योम]]
 +
* [[गंगा बहुत उदास / जगदीश व्योम]]
 +
* [[किससे करें गिला / जगदीश व्योम]]
 +
* [[सो गई है मनुजता की संवेदना / जगदीश व्योम]]
 +
* [[इतने आरोप न थोपो / जगदीश व्योम]]
 +
* [[माँ / जगदीश व्योम]]
 +
* [[अक्षर / जगदीश व्योम]]
 +
* [[रात की मुट्ठी / जगदीश व्योम]]
 +
* [[अहिंसा के बिरवे / जगदीश व्योम]]
 +
* [[बहते जल के साथ न बह / जगदीश व्योम]]
 +
* [[आहत युगबोध / जगदीश व्योम]]
 +
* [[सूरज का टुकड़ा / जगदीश व्योम]]
 +
* [[बाजीगर बन गई व्यवस्था / जगदीश व्योम]]
 +
* [[बादल कौन देश से आए! / जगदीश व्योम]]
 +
* [[नव वर्ष / जगदीश व्योम]]
 +
* [[बचपन / जगदीश व्योम]]
 +
* [[चिड़िया  और बच्चे / जगदीश व्योम]]
 +
* [[गिलहरी / जगदीश व्योम]]
 +
* [[मेरा भी तो मन करता है / जगदीश व्योम]]
 +
* [[सूरज इतना लाल हुआ / जगदीश व्योम]]
 +
* [[छंद / जगदीश व्योम]]
 +
* [[हे चिर अव्यय हे चिर नूतन / जगदीश व्योम]]
 +
* [[न जाने क्या होगा / जगदीश व्योम]]
 +
* [[पीपल की छाँव / जगदीश व्योम]]
 +
* [[ग्यारह दोहे / जगदीश व्योम]]
 +
* [[किसकी है तस्वीर / जगदीश व्योम]]
 +
* [[दादी कहती हैं / जगदीश व्योम]]
 +
* [[पिउ पिउ न पपिहरा बोल / जगदीश व्योम]]
 +
* [[हिरना क्यों उदास मन तेरा / जगदीश व्योम]]
 +
* [[हरसिंगार झरे / जगदीश व्योम]]
  
माँ वेदों की मूल चेतना
+
====[[हाइकु]]====
माँ गीता की वाणी-सी
+
* [[हाइकु नवगीत / जगदीश व्योम]]
माँ त्रिपिटिक के सिद्ध सुक्त-सी
+
* [[बादल रोया (हाइकु) / जगदीश व्योम]]
लोकोक्तर कल्याणी-सी।
+
* [[हाइकु / जगदीश व्योम]]
  
माँ द्वारे की तुलसी जैसी
+
====बाल-कविताएँ====
माँ बरगद की छाया-सी
+
* [[गौरैया / जगदीश व्योम]]
माँ कविता की सहज वेदना
+
* [[होती बात निराली / जगदीश व्योम]]
महाकाव्य की काया-सी।
+
माँ अषाढ़ की पहली वर्षा
+
सावन की पुरवाई-सी
+
माँ बसन्त की सुरभि सरीखी
+
बगिया की अमराई-सी।
+
 
+
माँ यमुना की स्याम लहर-सी
+
रेवा की गहराई-सी
+
माँ गंगा की निर्मल धारा
+
गोमुख की ऊँचाई-सी।
+
 
+
माँ ममता का मानसरोवर
+
हिमगिरि सा विश्वास है
+
माँ श्रृद्धा की आदि शक्ति-सी
+
कावा है कैलाश है।
+
 
+
माँ धरती की हरी दूब-सी
+
माँ केशर की क्यारी है
+
पूरी सृष्टि निछावर जिस पर
+
माँ की छवि ही न्यारी है।
+
 
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माँ धरती के धैर्य सरीखी
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माँ ममता की खान है
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माँ की उपमा केवल है
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माँ सचमुच भगवान है।
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****
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-डॉ० जगदीश व्योम
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सो गई है मनुजता की संवेदना
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सो गई है मनुजता की संवेदना
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गीत के रूप में भैरवी गाइए
+
गा न पाओ अगर जागरण के लिए
+
कारवां छोड़कर अपने घर जाइए
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झूठ की चाशनी में पगी ज़िंदगी
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आजकल स्वाद में कुछ खटाने लगी
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सत्य सुनने की आदी नहीं है हवा
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कह दिया इसलिए लड़खड़ाने लगी
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सत्य ऐसा कहो, जो न हो निर्वसन
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उसको शब्दों का परिधान पहनाइए।
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काव्य की कुलवधू हाशिए पर खड़ी
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ओढ़कर त्रासदी का मलिन आवरण
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चन्द सिक्कों में बिकती रही ज़िंदगी
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और नीलाम होते रहे आचरण
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लेखनी छुप के आंसू बहाती रही
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उनको रखने को गंगाजली चाहिए।
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राजमहलों के कालीन की कोख में
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कितनी रंभाओं का है कुंआरा स्र्दन
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देह की हाट में भूख की त्रासदी
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और भी कुछ है तो उम्र भर की घुटन
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इस घुटन को उपेक्षा बहुत मिल चुकी
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अब तो जीने का अधिकार दिलवाइए।
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भूख के प'श्न हल कर रहा जो उसे
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है जरूरत नहीं कोई कुछ ज्ञान दे
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कर्म से हो विमुख व्यक्ति गीता रटे
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और चाहे कि युग उसको सम्मान दे
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ऐसे भूले पथिक को पतित पंक से
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खींच कर कर्म के पंथ पर लाइए।
+
 
+
कोई भी तो नहीं दूध का है धुला
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है प्रदूषित समूचा ही पर्यावरण
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कोई नंगा खड़ा वक्त की हाट में
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कोई ओढ़े हुए झूठ का आवरण
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सभ्यता के नगर का है दस्तूर ये
+
इनमें ढल जाइए या चले आइए।
+
 
+
-डॉ॰ जगदीश व्योम
+
*****
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इतने आरोप न थोपो
+
 
+
इतने आरोप न थोपो
+
मन बागी हो जाए
+
मन बागी हो जाए,
+
वैरागी हो जाए
+
इतने आरोप न थोपो.......
+
 
+
यदि बांच सको तो बांचो
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मेरे अंतस की पीड़ा
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जीवन हो गया तरंग रहित
+
बस पाषाणी क्रीडा
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मन की अनुगूंज गूंज बन-बनकर
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जब अकुलाती है
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शब्दों की लहर लहर लहराकर
+
तपन बुझाती है
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ये चिनगारी फिर से न मचलकर
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आगी हो जाए
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मन बागी हो जाए
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इतने आरोप न थोपो..........
+
 
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खुद खाते हो पर औरों पर
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आरोप लगाते हो
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सिक्कों में तुम ईमान-धरम के
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संग बिक जाते हो
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आरोपों की जीवन में जब-जब
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हद हो जाती है
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परिचय की गांठ पिघलकर
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आंसू बन जाती है
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नीरस जीवन मुंह मोड़ न अब
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बैरागी हो जाए
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मन बागी हो जाए
+
इतने आरोप न थोपो.........
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आरोपों की विपरीत दिशा में
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चलना मुझे सुहाता
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सपने में भी है बिना रीढ़ का
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मीत न मुझको भाता
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आरोपों का विष पीकर ही तो
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मीरा घर से निकली
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लेखनी निराला की आरोपी
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गरल पान कर मचली
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ये दग्ध हृदय वेदनापथी का
+
सहभागी हो जाए
+
मन बागी हो जाए
+
इतने आरोप न थोपो .........
+
 
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क्यों दिए पंख जब उड़ने पर
+
लगवानी थी पाबंदी
+
क्यों रूप वहां दे दिया जहां
+
बस्ती की बस्ती अंधी
+
जो तर्क बुद्धि से दूर बने रह
+
करते जीवन क्रीड़ा
+
वे क्या जाने सुकरातों की
+
कैसी होती है पीड़ा
+
जीवन्त बुद्धि वेदनापूत की
+
अनुरागी हो जाए
+
मन बागी हो जाए
+
इतने आरोप न थोपो.......
+
 
+
-डॉ॰ जगदीश व्योम
+
*****
+
अक्षर
+
 
+
अक्षर कभी क्षर नहीं होता
+
इसीलिए तो वह 'अक्षर' है
+
क्षर होता है तन
+
क्षर होता है मन
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क्षर होता है धन
+
क्षर होता है अज्ञान
+
क्षर होता है
+
मान और सम्मान
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परंतु नहीं होता है कभी क्षर
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'अक्षर'
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इसलिए
+
अक्षरों को जानो
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अक्षरों को पहचानो
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अक्षरों को स्पर्श करो
+
अक्षरों को पढ़ो
+
अक्षरों को लिखो
+
अक्षरों की आरसी में
+
अपना चेहरा देखो
+
इन्हीं में छिपा है
+
तुम्हारा नाम
+
तुम्हारा ग्राम
+
और तुम्हारा काम
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सृष्टि जब समाप्त हो जाएगी
+
तब भी रह जाएगा 'अक्षर'
+
क्यों कि 'अक्षर' तो ब्रह्म है
+
और भला
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ब्रह्म भी कहीं मरता है?
+
आओ! बांचें
+
ब्रह्म के स्वरूप को
+
सीखकर अक्षर
+
 
+
-डॉ॰ जगदीश व्योम
+
****
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रात की मुठ्ठी
+
 
+
वक्त का आखेटक
+
घूम रहा है
+
शर संधान किए
+
लगाए है टकटकी
+
कि हम
+
करें तनिक सा प्रमाद
+
और, वह
+
दबोच ले हमें
+
तहस नहस कर दे
+
हमारे मिथ्याभिमान को
+
पर
+
आएगा सतत नैराश्य ही
+
उसके हिस्से में
+
क्यों कि
+
हमने पहचान ली है
+
उसकी पगध्वनि
+
दूर हो गया है
+
हमसे
+
हमारा तंद्रिल व्यामोह
+
हम ने पढ़ लिए हैं
+
समय के पंखों पर उभरे
+
पुलकित अक्षर
+
जिसमें लिखा है कि-
+
आओ!
+
हम सब मिल कर
+
खोलें,
+
रात की मुठ्ठी को
+
जिसमें कैद है
+
समूचा सूरज।
+
 
+
-डॉ॰ जगदीश व्योम
+
*****
+
अहिंसा के बिरवे
+
 
+
 
+
चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ।
+
बहुत लहलही आज हिंसा की फसलें
+
प्रदूषित हुई हैं धरा की हवाएँ।
+
चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ।।
+
 
+
 
+
बहुत वक़्त बीता कि जब इस चमन में
+
अहिंसा के बिरवे उगाए गए थे
+
थे सोये हुए भाव जर्नमन में गहरे
+
पवन सत्य द्वारा जगाये गये थे,
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बने वृक्ष, वर्टवृक्ष, छाया घनेरी
+
धरा जिसको महसूसती आज तक है
+
उठीं वक़्त की आँधियाँ कुछ विषैली
+
नियति जिसको महसूसती आज तक है,
+
नहीं रख सके हम सुरक्षित धरोहर
+
अभी वक़्त है, हम अभी चेत जाएँ।
+
चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ।।
+
 
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नहीं काम हिंसा से चलता है भाई
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सदा अंत इसका रहा दु:खदाई
+
महावीर, गाँधी ने अनुभव किया, फिर
+
अहिंसा की सीधी डगर थी बताई
+
रहे शुद्ध-मन, शुद्ध-तन, शुद्ध-चिंतन
+
अहिंसा के पथ की यही है कसौटी
+
दुखद अन्त हिंसा का होता हमेशा
+
सुखद खूब होती अहिंसा की रोटी
+
नई इस सदी में, सघन त्रासदी में
+
नई रोशनी के दिये फिर जलाएँ।
+
चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ।
+
 
+
 
+
-र्डॉ० जगदीश 'व्योम'
+
 
+
 
+
*****
+
बहते जल के साथ न बह
+
 
+
गजल
+
 
+
बहते जल के साथ न बह
+
कोशिश करके मन की कह।
+
 
+
मौसम ने तेवर बदले
+
कुछ तो होगी खास बज़ह।
+
 
+
कुछ तो खतरे होंगे ही
+
चाहे जहाँ कहीं भी रह।
+
 
+
लोग तूझे कायर समझें
+
इतने अत्याचार न सह।
+
 
+
झूठ कपट मक्कारी का
+
चारण बनकर गजल न कह।
+
 
+
-डॉ॰ जगदीश व्योम
+

09:58, 15 फ़रवरी 2024 का अवतरण

जगदीश व्योम
www.kavitakosh.org/vyom
Vyom-29-8-06.jpg
जन्म 01 मई 1960
निधन
उपनाम व्योम
जन्म स्थान शम्भूनगला, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
कन्नौजी लोकगाथाओं का सर्वेक्षण और विश्लेषण (शोध-ग्रंथ), कन्नौजी शब्द कोश (कोश), हिंदी हाइकु कोश, लोकोक्ति एवं मुहावरा कोश, नन्हा बलिदानी (बाल उपन्यास), डब्बू की डिबिया (बाल उपन्यास), तीन पैरों वाला चोर (बाल कहानी संग्रह), सगुनी का सपना (बाल कहानी संग्रह), इन्द्र धनुष, भोर के स्वर (काव्य संग्रह), आजादी के आस पास, कहानियों का कुनबा (संपादित कहानी संग्रह), फुलवारी (बालगीत संकलन), ’बाल प्रतिबिम्ब’ (बाल साहित्य पत्रिका), भारतीय बच्चों के हाइकु (दिल्ली के सरकारी स्कूल के बच्चों की हाइकु कविताओं का संकलन)
विविध
विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए लगभग ३० पुस्तकों का संपादन, ’हाइकु दर्पण’ (हाइकु पत्रिका)- का संपादन एवं प्रकाशन।
जीवन परिचय
जगदीश व्योम / परिचय
कविता कोश पता
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कविता-संग्रह

नवगीत / कविताएँ

हाइकु

बाल-कविताएँ