भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यूँ पवन, रुत को रंगीं बनाये / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= राम प्रसाद शर्मा "महर्षि" |संग्रह= नागफनियों ने ...)
(कोई अंतर नहीं)

07:02, 21 नवम्बर 2008 का अवतरण

यूँ पवन, रुत को रंगीं बनाये
ऊदी-ऊदी घटा ले के आये

भीगा-भीगा-सा ये आज मौसम
गीत-ग़ज़लों की बरसात लाये

ख़ूब से क्यों न फिर ख़ूबतर हो
जब ग़ज़ल चाँदनी में नहाये

दिल में मिलने की बेताबियाँ हों
फ़ासला ये करिश्मा दिखाये

साज़े-दिल बज के कहता है ‘महरिष’
ज़िंदगी रक्स डूब जाए.