"माँ का ख्वाब / गोपालप्रसाद रिमाल / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर
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माँ, वह आएगा भी? | माँ, वह आएगा भी? | ||
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"हाँ, बेटा, वह आएगा। | "हाँ, बेटा, वह आएगा। | ||
− | वह सुबह | + | वह सुबह के सूरज की तरह रोशनी बिखेरते हुए आएगा। |
− | उसकी कमर | + | उसकी कमर पर शबनम-सा जगमगाता हुआ |
तुम एक हथियार देखोगे, | तुम एक हथियार देखोगे, | ||
− | उसी के सहारे | + | उसी के सहारे वह अधर्म से लड़ेगा! |
− | उसके आने | + | उसके आने पर |
पहले तो तुम ख्वाब समझकर इधर-उधर टटोलोगे, | पहले तो तुम ख्वाब समझकर इधर-उधर टटोलोगे, | ||
− | मगर वह बर्फ और आग से भी ज्यादा काबिल-ए-एहसास हो कर | + | मगर वह बर्फ और आग से भी ज्यादा काबिल-ए-एहसास हो कर आएगा।" |
सच माँ? | सच माँ? | ||
− | "हाँ, | + | "हाँ, तुम्हारे पैदा होते समय |
− | उसी की | + | तुम्हारे मासूम चेहरे पर |
− | तुम्हारी मुस्कुराहट | + | उसी की छाया देखने की तमन्ना थी मुझे। |
− | तुम्हारे तोतले शब्दों | + | तुम्हारी मुस्कुराहट पर उसी का ख़ूबसूरत अक्स, |
+ | तुम्हारे तोतले शब्दों में उसी की मद्धम आवाज़, | ||
मगर अब पता चला कि | मगर अब पता चला कि | ||
− | उस मनमोहक गाने ने | + | उस मनमोहक गाने ने तुम्हें अपना बाँसुरी नहीं बनाया। |
जवानी भर मेरा ख्वाब था कि वह तुम ही होगे।" | जवानी भर मेरा ख्वाब था कि वह तुम ही होगे।" | ||
जो भी हो, वह आएगा; | जो भी हो, वह आएगा; | ||
− | माँ हूँ मैं, सारे | + | माँ हूँ मैं, सारे सृजनशक्ति की बोली बन के कह सकती हूँ |
− | वह आएगा | + | वह आएगा, |
− | + | यह मेरा कोई आलसी ख्वाब नहीं है। | |
− | + | उसके आने के बाद | |
− | तुम मेरी गोद में आकर ऐसे | + | तुम मेरी गोद में आकर ऐसे सिर नहीं छुपाओगे, |
− | सत्य को तुम | + | सत्य को तुम |
− | कहानियाँ सुनने जैसे | + | कहानियाँ सुनने जैसे खिंचते चले आकर नहीं सुनोगे, |
− | तुम उसे खुद ही देख सकोगे, सह सकोगे और | + | तुम उसे खुद ही देख सकोगे, सह सकोगे और कबूल कर सकोगे; |
− | + | तुम्हें जंग में जाते हुए | |
− | + | मैं इस तरह सब्र सिखाती नहीं होऊँगी | |
− | तुम लाख मनाने पर भी न | + | तुम लाख मनाने पर भी न मानने वाले माँ के दिल को सांत्वना देकर जाओगे; |
− | मुझे इस तरह किसी बीमार को सहलाने | + | मुझे इस तरह किसी बीमार को सहलाने जैसे तुम्हारे बाल सहलाना नहीं पड़ेगा। |
− | देखते रहो, वह आँधी | + | देखते रहो, वह आँधी बनकर आएगा, |
− | तुम पत्ता | + | तुम पत्ता बनकर उसके पीछे भागोगे! |
सालों पहले उसका जीवनलोक से गिरकर चाँदनी-सा बिखरते वक्त | सालों पहले उसका जीवनलोक से गिरकर चाँदनी-सा बिखरते वक्त | ||
− | + | सारी जड़ता सगबगा उठी थी, बेटे; | |
− | वह आएगा, तुम जागोगे !" | + | वह आएगा, तुम जागोगे!" |
क्या वह सचमुच आएगा माँ? | क्या वह सचमुच आएगा माँ? | ||
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− | 'हाँ वह आएगा, | + | उसके आने की उम्मीद |
− | वह सुबह | + | जैसे मधुर उषा चिड़ियों के गले को गुदगुदाती है |
− | अब मैं उठी, मैं चली। | + | वैसे ही मेरे दिल को गुदगुदा रही है! |
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− | "मगर जवानी भर मेरा ख्वाब था कि | + | 'हाँ, वह आएगा, |
+ | वह सुबह के सूरज की तरह रोशनी बिखेरते हुए आएगा। | ||
+ | अब मैं उठी, मैं चली।' | ||
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+ | "मगर जवानी भर मेरा ख्वाब था कि | ||
वह तुम ही होगे।" | वह तुम ही होगे।" | ||
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+ | ''यहाँ तल क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपाली पढ्न सकिनेछ-'' | ||
+ | '''[[आमाको सपना / गोपालप्रसाद रिमाल]]''' | ||
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20:00, 31 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
माँ, वह आएगा भी?
"हाँ, बेटा, वह आएगा।
वह सुबह के सूरज की तरह रोशनी बिखेरते हुए आएगा।
उसकी कमर पर शबनम-सा जगमगाता हुआ
तुम एक हथियार देखोगे,
उसी के सहारे वह अधर्म से लड़ेगा!
उसके आने पर
पहले तो तुम ख्वाब समझकर इधर-उधर टटोलोगे,
मगर वह बर्फ और आग से भी ज्यादा काबिल-ए-एहसास हो कर आएगा।"
सच माँ?
"हाँ, तुम्हारे पैदा होते समय
तुम्हारे मासूम चेहरे पर
उसी की छाया देखने की तमन्ना थी मुझे।
तुम्हारी मुस्कुराहट पर उसी का ख़ूबसूरत अक्स,
तुम्हारे तोतले शब्दों में उसी की मद्धम आवाज़,
मगर अब पता चला कि
उस मनमोहक गाने ने तुम्हें अपना बाँसुरी नहीं बनाया।
जवानी भर मेरा ख्वाब था कि वह तुम ही होगे।"
जो भी हो, वह आएगा;
माँ हूँ मैं, सारे सृजनशक्ति की बोली बन के कह सकती हूँ
वह आएगा,
यह मेरा कोई आलसी ख्वाब नहीं है।
उसके आने के बाद
तुम मेरी गोद में आकर ऐसे सिर नहीं छुपाओगे,
सत्य को तुम
कहानियाँ सुनने जैसे खिंचते चले आकर नहीं सुनोगे,
तुम उसे खुद ही देख सकोगे, सह सकोगे और कबूल कर सकोगे;
तुम्हें जंग में जाते हुए
मैं इस तरह सब्र सिखाती नहीं होऊँगी
तुम लाख मनाने पर भी न मानने वाले माँ के दिल को सांत्वना देकर जाओगे;
मुझे इस तरह किसी बीमार को सहलाने जैसे तुम्हारे बाल सहलाना नहीं पड़ेगा।
देखते रहो, वह आँधी बनकर आएगा,
तुम पत्ता बनकर उसके पीछे भागोगे!
सालों पहले उसका जीवनलोक से गिरकर चाँदनी-सा बिखरते वक्त
सारी जड़ता सगबगा उठी थी, बेटे;
वह आएगा, तुम जागोगे!"
क्या वह सचमुच आएगा माँ?
उसके आने की उम्मीद
जैसे मधुर उषा चिड़ियों के गले को गुदगुदाती है
वैसे ही मेरे दिल को गुदगुदा रही है!
'हाँ, वह आएगा,
वह सुबह के सूरज की तरह रोशनी बिखेरते हुए आएगा।
अब मैं उठी, मैं चली।'
"मगर जवानी भर मेरा ख्वाब था कि
वह तुम ही होगे।"
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आमाको सपना / गोपालप्रसाद रिमाल