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"रात है पूस की और कपड़े नहीं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | गूढ़ बातें भले हम न समझें मगर | ||
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+ | रास्ते तो हज़ारों अमीरी के हैं | ||
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+ | फ़ख़्र है दोस्त अपनी अना पर मुझे | ||
+ | सिर्फ़ मज़बूर हैं ऐसे वैसे नहीं | ||
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21:47, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण
रात है पूस की और कपड़े नहीं
भूखे बच्चे मेरे घर में दाने नहीं
कुछ तबीयत मेरी आज नाशाद है
और मौसम के तेवर भी अच्छे नहीं
बोलने को तो बढ़िया हैं सब बोलते
पर मददगार जो भी हैं सच्चे नहीं
हर किसी ऐरे गैरे की ले लें मदद
जाइए - जाइए इतने भूखे नहीं
गूढ़ बातें भले हम न समझें मगर
नज़्र की भाषा पढ़ने में कच्चे नहीं
रास्ते तो हज़ारों अमीरी के हैं
ऐसे रस्ते पे हम किंतु चलते नहीं
फ़ख़्र है दोस्त अपनी अना पर मुझे
सिर्फ़ मज़बूर हैं ऐसे वैसे नहीं