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"तुम हो तो संसार सुहाना लगता है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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वैसे तो तुम सिर्फ़ अकेले मेरे हो
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किंतु तुम्हारा जग दीवाना लगता है
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पूरे मन से कोशिश तो करते पहले
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' सारी ' कहना सिर्फ़ बहाना लगता है
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तुम हो मेरे साथ तो मैं कंगाल कहाँ
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रूप तुम्हारा एक ख़ज़ाना लगता है
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राजा रंक बराबर कैसे हो सकते
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प्यार हमारा इक अफ़साना लगता है
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कोई बात नहीं ये पल भी आने थे
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आँसू उल्फ़त का नज़राना लगता है
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हँसते- हँसते कैसे प्राण लुटा बैठा
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मुझको वो कोई परवाना लगता है
 
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21:55, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण

तुम हो तो संसार सुहाना लगता है
वरना गुलशन भी वीराना लगता है

वैसे तो तुम सिर्फ़ अकेले मेरे हो
किंतु तुम्हारा जग दीवाना लगता है

पूरे मन से कोशिश तो करते पहले
' सारी ' कहना सिर्फ़ बहाना लगता है

तुम हो मेरे साथ तो मैं कंगाल कहाँ
रूप तुम्हारा एक ख़ज़ाना लगता है

राजा रंक बराबर कैसे हो सकते
प्यार हमारा इक अफ़साना लगता है

कोई बात नहीं ये पल भी आने थे
आँसू उल्फ़त का नज़राना लगता है

हँसते- हँसते कैसे प्राण लुटा बैठा
मुझको वो कोई परवाना लगता है