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"बात सच्ची थी तो मैं भी अड़ गया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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नेवले से था छुड़ाया साँप को
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साँप वो मेरे गले ही पड़ गया
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जांय पशु पंछी बेचारे अब कहाँ
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ताल का पानी तो सारा सड़ गया
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दंभ में आकर हुई ऐसी ख़ता
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यकबयक सब लोग धोखा खा गये
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बंद पिंजरे से सुआ जब उड़ गया
 
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21:55, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण

बात सच्ची थी तो मैं भी अड़ गया
इक अकेला फ़ौज से भी लड़ गया

नेवले से था छुड़ाया साँप को
साँप वो मेरे गले ही पड़ गया

जांय पशु पंछी बेचारे अब कहाँ
ताल का पानी तो सारा सड़ गया

आँख मैंने खोल रक्खी थी ज़रूर
पर , अचानक आँख में कंकड़ गया

दूर तक दिखता नहीं मुझको बसंत
मान लूँ कैसे भला पतझड़ गया

दंभ में आकर हुई ऐसी ख़ता
शर्म के मारे ज़मीं में गड़ गया

यकबयक सब लोग धोखा खा गये
बंद पिंजरे से सुआ जब उड़ गया