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"समझ रहे हम भी उसकी चतुराई को / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | मत कोसो पल - पल बढ़ती मंहगाई को | ||
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+ | दो - दो बेटे आला दर्ज़े के अफ़सर | ||
+ | बूढ़ी माँ भटके है मगर दवाई को | ||
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+ | हाथी की ताकत में केवल दंभ दिखे | ||
+ | चींटी नापे पर्वत की ऊँचाई को | ||
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22:03, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण
समझ रहे हम भी उसकी चतुराई को
पर , हम डरते हैं अपनी रुसवाई को
बच्चा - बच्चा जान रहा सच्चाई को
क्यों वो लड़वाता है भाई - भाई को
चारा डाल रहा है वह किस मतलब से
मछुआरे की परखो उस चतुराई को
बात नहीं यह भाती है सरकारों को
मत कोसो पल - पल बढ़ती मंहगाई को
सड़कें चौड़ी करना एक बहाना है
काट रहा वो पुरखों की अमराई को
सरप्लस पूँजी रखकर कोई इतराता
तरस रहा है कोई पाई - पाईं को
दो - दो बेटे आला दर्ज़े के अफ़सर
बूढ़ी माँ भटके है मगर दवाई को
हाथी की ताकत में केवल दंभ दिखे
चींटी नापे पर्वत की ऊँचाई को