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"जो हुआ सो हुआ छोड़ दो सोचना / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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अब ये मुमकिन नहीं है मगर बदलना
  
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हाथ में अपने होता है सब कुछ नहीं
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सोचकर यह न फिर शोक में डूबना
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इतने मायूस होने लगे आप क्यों
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मुस्कराने का कोई सबब ढूँढना
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जिसकी मंज़िल नहीं वो भी है रास्ता
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ख़त्म होती नहीं कोई संभावना
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सच को सच देखना, झूठ को झूठ ही
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आँख में धूल खुद अपनी मत झोंकना
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मुश्किलों से कहाँ तक बचेगा कोई
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रास्ता एक ही है करो सामना
 
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22:23, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण

जो हुआ सो हुआ छोड़ दो सोचना
आगे करना है क्या अब है यह देखना
 
मानता हूँ ग़लत फ़ैसला हो गया
अब ये मुमकिन नहीं है मगर बदलना

हाथ में अपने होता है सब कुछ नहीं
सोचकर यह न फिर शोक में डूबना

इतने मायूस होने लगे आप क्यों
मुस्कराने का कोई सबब ढूँढना

जिसकी मंज़िल नहीं वो भी है रास्ता
 ख़त्म होती नहीं कोई संभावना

सच को सच देखना, झूठ को झूठ ही
आँख में धूल खुद अपनी मत झोंकना
 
मुश्किलों से कहाँ तक बचेगा कोई
रास्ता एक ही है करो सामना