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"सत्ता के लोभ ने उसे पागल बना दिया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | + | सत्ता के लोभ ने उसे पागल बना दिया | |
− | + | नज़रों से फिर अवाम ने उसको गिरा दिया | |
− | + | औकात क्या उस सूट की धोती के सामने | |
− | + | गांधी को फ़कीरी ने फ़रिश्ता बना दिया | |
− | + | डंका हमारे मुल्क का बजता था विश्व में | |
− | + | कमज़र्फ़ हुकूमत ने क्या से क्या बना दिया | |
− | + | मौका जो मिला तुझको कहाँ मिलता वो सबको | |
− | + | अफ़सोस मगर तूने व्यर्थ ही गवाँ दिया | |
− | + | मंदिर में गया था सुकूं तलाशने मगर | |
− | + | उसने तो इबादत को भी धंधा बना दिया | |
− | + | क्या अंधभक्ति का उसे ईनाम यूँ मिला | |
− | + | अच्छे भले इंसान को चमचा बना दिया | |
− | + | लगता है आप अब मुझे पहचानते नहीं | |
− | + | मेरी वफ़ा का आपने अच्छा सिला दिया | |
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15:31, 22 मार्च 2025 के समय का अवतरण
सत्ता के लोभ ने उसे पागल बना दिया
नज़रों से फिर अवाम ने उसको गिरा दिया
औकात क्या उस सूट की धोती के सामने
गांधी को फ़कीरी ने फ़रिश्ता बना दिया
डंका हमारे मुल्क का बजता था विश्व में
कमज़र्फ़ हुकूमत ने क्या से क्या बना दिया
मौका जो मिला तुझको कहाँ मिलता वो सबको
अफ़सोस मगर तूने व्यर्थ ही गवाँ दिया
मंदिर में गया था सुकूं तलाशने मगर
उसने तो इबादत को भी धंधा बना दिया
क्या अंधभक्ति का उसे ईनाम यूँ मिला
अच्छे भले इंसान को चमचा बना दिया
लगता है आप अब मुझे पहचानते नहीं
मेरी वफ़ा का आपने अच्छा सिला दिया