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"सुना है मगर ये हक़ीक़त नहीं है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | ये दिल की कसक है नसीहत नहीं है | ||
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15:34, 22 मार्च 2025 के समय का अवतरण
सुना है मगर ये हक़ीक़त नहीं है
उन्हें अब हमारी ज़रूरत नहीं है
अगर जम गये पंख हैं तो उड़ें वो
हमें उनसे कोई शिकायत नहीं है
बहुत व्यस्त हैं खुद के धंधों में अब वो
हमारे लिए उनको फ़ुरसत नहीं है
पिता से अलग खुद की दुनिया बसायें
ये बेटों का मन है बग़ावत नहीं है
तअल्लुक़ नहीं अब रहा कोई बेशक
मगर उनसे कोई अदावत नहीं है
मेरे फ़ैसलों में दख़ल दे कोई क्यों
किसी मशवरे की ज़रूरत नहीं है
किसे बख़्शता है समय याद रखना
ये दिल की कसक है नसीहत नहीं है