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"आप तो ग़ैरों को बेशक जीत लेंगे / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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बस हवा भर जाने की ही देर यारो
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खोखले गुब्बारे भी उड़ने लगेंगे
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जो मुकद्दर या कि ईश्वर के भरोसे
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वे नदी के तट पे भी प्यासे मरेंगे
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नज्र भी हो और उम्दा नज़रिया भी
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ढूँढिएगा लोग ऐसे कम मिलेंगे
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आँधियों से लड़ के पत्ते बच गये, पर
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जब ख़िज़ाँ आयेगी तो कैसे बचेंगे
 
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15:59, 22 मार्च 2025 के समय का अवतरण

आप तो ग़ैरों को बेशक जीत लेंगे
घात में अपने हों तो कैसे बचेंगे

सड़क के कंकड़ से तो बचना सरल है
जूते में ककड़ हों तो कैसे चलेंगे

बस हवा भर जाने की ही देर यारो
खोखले गुब्बारे भी उड़ने लगेंगे

जो मुकद्दर या कि ईश्वर के भरोसे
वे नदी के तट पे भी प्यासे मरेंगे

नज्र भी हो और उम्दा नज़रिया भी
ढूँढिएगा लोग ऐसे कम मिलेंगे

आँधियों से लड़ के पत्ते बच गये, पर
जब ख़िज़ाँ आयेगी तो कैसे बचेंगे