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"टूटी हुई कब्रों से सदा आने लगेगी / पुष्पराज यादव" के अवतरणों में अंतर

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23:32, 30 मार्च 2025 के समय का अवतरण

टूटी हुई कब्रों से सदा आने लगेगी
मैं हाथ उठाऊँगा दुआ आने लगेगी

तुम कितनी ही ज़िन्दा फ़सीलों को उठा लो
मैं चीज़ ही वह हूँ कि हवा आने लगेगी

जिस दश्त में भटकूँगा डगर सामने होगी
जिस सम्त भी देखूँगा ज़िया आने लगेगी

सुनते हुये तू भी नहीं सह पायेगी वह बात
कहते हुये मुझको भी हया आने लगेगी

मैं शाम के सायों की तरह ढलने चलूँगा
रुक-रुक के मुझे कोह-ए-निदा आने लगेगी