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"जीवन की गहराई मैंने मापी है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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मगर तलहटी छूना अब भी  बाक़ी है
  
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अंतर्मन की पीड़ा कौन समझ सकता
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दरिया में रहकर भी मीन पियासी है
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हँसते चेहरे लगते हैं फूलों जैसे
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मुस्कानों के पीछे मगर उदासी है
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ये संसार विचित्र बड़ा फिर ताज़्जुब क्या
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घर का भेदी मेरा अपना भाई है
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दिखता है जो वह ही पूरा सत्य नहीं
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मेरे पीछे भी मेरा इक माज़ी है
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उस भोले पंछी की आँखें  देखी हैं
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शांत चित्त है फिर भी तेवर बाग़ी है
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लड़ने की ताक़त है किसके पास नहीं
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माना उस चींटी के आगे हाथी है
 
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18:13, 3 मई 2025 के समय का अवतरण

जीवन की गहराई मैंने मापी है
मगर तलहटी छूना अब भी बाक़ी है

अंतर्मन की पीड़ा कौन समझ सकता
दरिया में रहकर भी मीन पियासी है

हँसते चेहरे लगते हैं फूलों जैसे
मुस्कानों के पीछे मगर उदासी है

ये संसार विचित्र बड़ा फिर ताज़्जुब क्या
 घर का भेदी मेरा अपना भाई है

दिखता है जो वह ही पूरा सत्य नहीं
मेरे पीछे भी मेरा इक माज़ी है

उस भोले पंछी की आँखें देखी हैं
शांत चित्त है फिर भी तेवर बाग़ी है

लड़ने की ताक़त है किसके पास नहीं
माना उस चींटी के आगे हाथी है