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"ज़माने से औरत सतायी हुई है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | जो आँगन में कल तुमको अबला दिखी थी | ||
+ | समर में वही आज चंडी बनी है | ||
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+ | बहुत देर से साँप पीछे पड़ा था | ||
+ | पर अब मोरनी भी वो तनकर खड़ी है | ||
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+ | पतंगों को जाकर ख़बरदार कर दो | ||
+ | ज़माना नया है, नयी रोशनी है | ||
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18:17, 3 मई 2025 के समय का अवतरण
ज़माने से औरत सतायी हुई है
नहीं ख़त्म होती जो वो त्रासदी है
दरिंदे इधर तो उधर भेड़िये हैं
बचे कैसे हिरनी मुसीबत बड़ी है
कोई डर दिखाता कोई देता लालच
कोई बोलता है कि मछली फंसी है
महल में हो या झोपड़ी में हो औरत
जहाँ भी हो औरत कहानी वही है
सरलता ही देखी है औरत की तूने
प्रलय भी मचा दे ये ऐसी नदी है
जो आँगन में कल तुमको अबला दिखी थी
समर में वही आज चंडी बनी है
बहुत देर से साँप पीछे पड़ा था
पर अब मोरनी भी वो तनकर खड़ी है
पतंगों को जाकर ख़बरदार कर दो
ज़माना नया है, नयी रोशनी है