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"हाल अच्छा बुरा सब भुला दीजिये / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | कैसे बचाए खुद को, ईमान की नज़र में | ||
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+ | नुकसान बस उन्हीं का लटके हैं जो अधर में | ||
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+ | वो भेड़िया बराबर, रहता मेरी नज़र में | ||
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18:19, 3 मई 2025 का अवतरण
बेदाग़ है वो क़ातिल इंसाफ़ की नज़र में
गुंडे पनाह पायें , तहज़ीब के नगर में
सच बोल कर वो हारा, बेमौत जाय मारा
कैसे बचाए खुद को, ईमान की नज़र में
बुज़दिल हज़ार मौतें मरता है , पर बहादुर
इक बार में फ़ना हो लड़ते हुए समर में
राहें बचा के जिसकी चलते थे कल तलक हम
वह देवता बना है लोगों की अब नज़र में
कल तक जो बाज़ुओं की ताक़त दिखा रहा था
दहशत के मारे वह भी, दुबका है अपने घर में
कुछ फ़ायदे इधर तो कुछ फ़ायदे उधर भी
नुकसान बस उन्हीं का लटके हैं जो अधर में
माना नकाब में अब , रहता है छुप के लेकिन
वो भेड़िया बराबर, रहता मेरी नज़र में