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"इंसाफ़ हो सही कि ग़लत पूछते नहीं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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क्यों  आँख बंद कर लें कबूतर की तरह हम
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क्या आँख बंद कर लें तो महसूसते नहीं
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भगवान मान ही लिया गया वो अंततः
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भगवान में फिर ऐब कोई  ढूँढते  नहीं
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कश्ती उतार दी है समंदर  दोस्तो
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डूबेंगे या बचेंगे ये फिर सोचते नहीं
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ईमान को जो आन, बान, शान मानते
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अपने ज़मीर को वो कभी बेचते  नहीं
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माना कि याददाश्त है कमज़ोर हमारी
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एहसान मगर हम किसी का भूलते नहीं
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अपने पिता की भूल से ये सीख हमने ली
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कल पर  कोई हम काम कभी छोड़ते नही
 
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19:00, 3 मई 2025 के समय का अवतरण

इंसाफ़ हो सही कि ग़लत पूछते नहीं
जज के ख़िलाफ़ लफ़्ज़ एक बोलते नहीं

क्यों आँख बंद कर लें कबूतर की तरह हम
क्या आँख बंद कर लें तो महसूसते नहीं

भगवान मान ही लिया गया वो अंततः
भगवान में फिर ऐब कोई ढूँढते नहीं

कश्ती उतार दी है समंदर दोस्तो
डूबेंगे या बचेंगे ये फिर सोचते नहीं

ईमान को जो आन, बान, शान मानते
अपने ज़मीर को वो कभी बेचते नहीं

माना कि याददाश्त है कमज़ोर हमारी
एहसान मगर हम किसी का भूलते नहीं

अपने पिता की भूल से ये सीख हमने ली
कल पर कोई हम काम कभी छोड़ते नही