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"बड़ा शोर है कुछ सुनाई न देता / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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जो महफ़ूज़ होती मेरी जां, मेरी जां
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मदद के लिए मैं दुहाई न देता
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सही बोलने की सज़ा पा रहा हूँ
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ये ज़ालिम ज़माना रिहाई न देता
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मुझे सिर्फ़ इतनी शिकायत है उससे
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ज़हर देता पर बेवफ़ाई न देता
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कहीं कुछ न कुछ बात होगी यक़ीनन
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नहीं तो वो इतनी सफ़ाई न देता
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कुआँ है इधर तो उधर भी है खांई
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वहाँ हूँ जहाँ कुछ सुझाई न देता
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लहू हो गया होता पानी जो मेरा
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तो दिल मेरा  इतनी ढिठाई न देता
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ख़ुदा मेरे जज़्बे रवां  हैं अभी तक
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मैं लड़ता जो मुझको बुढ़ाई न देता
 
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12:29, 4 मई 2025 के समय का अवतरण

बड़ा शोर है कुछ सुनाई न देता
अँधेरे में कुछ भी दिखाई न देता

जो महफ़ूज़ होती मेरी जां, मेरी जां
मदद के लिए मैं दुहाई न देता

सही बोलने की सज़ा पा रहा हूँ
ये ज़ालिम ज़माना रिहाई न देता

मुझे सिर्फ़ इतनी शिकायत है उससे
ज़हर देता पर बेवफ़ाई न देता

कहीं कुछ न कुछ बात होगी यक़ीनन
नहीं तो वो इतनी सफ़ाई न देता

कुआँ है इधर तो उधर भी है खांई
वहाँ हूँ जहाँ कुछ सुझाई न देता

लहू हो गया होता पानी जो मेरा
तो दिल मेरा इतनी ढिठाई न देता

ख़ुदा मेरे जज़्बे रवां हैं अभी तक
मैं लड़ता जो मुझको बुढ़ाई न देता