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"मुर्दों की यह बस्ती इसमें बसना क्या / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | पनही टूटे, लेकिन मंज़िल मिल जाये | ||
+ | इससे कम की इच्छा मन में रखना क्या | ||
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12:32, 4 मई 2025 के समय का अवतरण
मुर्दों की यह बस्ती इसमें बसना क्या
हार अगर तुम मान लिए तो कहना क्या
पूरी तैयारी से जंग लड़ी जाती
आधे मन से लड़ना कोई लड़ना क्या
हाथ मिलाने का कोई मतलब है क्या
मन न मिले जिससे उससे फिर मिलना क्या
आओ हम सब मिलकर उससे बात करें
बाघ है कोई खा लेगा वो डरना क्या
भेजे में उसके न घुसे गर बात मेरी
फिर उससे कुछ कहना या ना कहना क्या
पत्थर पर उगकर दिखलाओ तो मानूं
उपजाऊ मिट्टी में उगना, उगना क्या
पनही टूटे, लेकिन मंज़िल मिल जाये
इससे कम की इच्छा मन में रखना क्या