"रजमतिया के चिट्टी / भोजपुरी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | लिखि देई स्वस्तीय श्री चिट्ठी राउर पवलीं, | |
− | + | पाँच सोरह रूपइया तऽ रउरे पठवलीं। | |
− | + | एतनो से कम नाहीं होवे ले विपतिया, | |
− | + | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥1॥ | |
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− | + | कबरी छेगड़िया हमार बेरमाइल, | |
− | + | पांड़े जी क झबरा पिलउआ हेराइल। | |
− | + | कोहड़ा पर पाला मरलसि, लागे नाहीं बतिया, | |
− | रोज - | + | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥2॥ |
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− | + | लिखि देई जाड़ा बा, बनवां लीहें रजाई, | |
− | + | खोंखी आइल मरिगे, समुनरी के माई। | |
− | + | बड़े जोर बेराम बा, निरंजन बाबा के नतिया, | |
− | + | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥3॥ | |
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− | + | पछुआ पवन चले सिहरे परनवाँ, | |
− | + | छन-छन भरि-भरि आवेला नयनवाँ। | |
− | + | दिनवों त बीतेला, कटेले नाहीं रतिया, | |
− | + | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥4॥ | |
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+ | लिखि देईं बिरही फगुनवों नेराइल, | ||
+ | बउरल अमवाँ, महुअवाँ गदाइल। | ||
+ | सेल्हा में अदउआ गुहैले भनमतिया, | ||
+ | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया ॥5॥ | ||
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+ | जै पइसा आइल तै सौ राहे गइल सैंया, | ||
+ | किनि नाहीं पवली हम अइया के दवइया। | ||
+ | ससुई ननदि रोज कहें सौ-सौ बतिया, | ||
+ | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥6॥ | ||
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+ | कई बेर पूछलें, मलगुजरिया पियादा, | ||
+ | कहलीं निबका देब अइहे उतमी के दादा। | ||
+ | नेइये तरे हउदी सटवलसि रमगतिया, | ||
+ | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया ॥7॥ | ||
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+ | लिखि देईं, भंगरा मदरसा पै जाला, | ||
+ | पंडित जी के परसों उठा ले आइल ताला। | ||
+ | ओके निरगुनवां, मिलल बा संघतिया, | ||
+ | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥8॥ | ||
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+ | छोटका के नरखा, मझिलका के नाहीं, | ||
+ | बुधनी सयान होगे, सारी वोके चाही। | ||
+ | काठे के करेजा कइलें बजरे कै छतिया, | ||
+ | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥9॥ | ||
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+ | खुदै हुसियार हवें ढेर का लिखाईं, | ||
+ | कगजा पै केतनी कलमि दउराईं। | ||
+ | कुलि-कुलि करिहें, बेसहिहें न सवतिया, | ||
+ | रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥10॥ | ||
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+ | [दयानन्द पाण्डेय द्वारा प्रेषित संशोधित वर्जन] |
12:55, 28 जून 2025 के समय का अवतरण
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लिखि देई स्वस्तीय श्री चिट्ठी राउर पवलीं,
पाँच सोरह रूपइया तऽ रउरे पठवलीं।
एतनो से कम नाहीं होवे ले विपतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥1॥
कबरी छेगड़िया हमार बेरमाइल,
पांड़े जी क झबरा पिलउआ हेराइल।
कोहड़ा पर पाला मरलसि, लागे नाहीं बतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥2॥
लिखि देई जाड़ा बा, बनवां लीहें रजाई,
खोंखी आइल मरिगे, समुनरी के माई।
बड़े जोर बेराम बा, निरंजन बाबा के नतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥3॥
पछुआ पवन चले सिहरे परनवाँ,
छन-छन भरि-भरि आवेला नयनवाँ।
दिनवों त बीतेला, कटेले नाहीं रतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥4॥
लिखि देईं बिरही फगुनवों नेराइल,
बउरल अमवाँ, महुअवाँ गदाइल।
सेल्हा में अदउआ गुहैले भनमतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया ॥5॥
जै पइसा आइल तै सौ राहे गइल सैंया,
किनि नाहीं पवली हम अइया के दवइया।
ससुई ननदि रोज कहें सौ-सौ बतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥6॥
कई बेर पूछलें, मलगुजरिया पियादा,
कहलीं निबका देब अइहे उतमी के दादा।
नेइये तरे हउदी सटवलसि रमगतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया ॥7॥
लिखि देईं, भंगरा मदरसा पै जाला,
पंडित जी के परसों उठा ले आइल ताला।
ओके निरगुनवां, मिलल बा संघतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥8॥
छोटका के नरखा, मझिलका के नाहीं,
बुधनी सयान होगे, सारी वोके चाही।
काठे के करेजा कइलें बजरे कै छतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥9॥
खुदै हुसियार हवें ढेर का लिखाईं,
कगजा पै केतनी कलमि दउराईं।
कुलि-कुलि करिहें, बेसहिहें न सवतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥10॥
[दयानन्द पाण्डेय द्वारा प्रेषित संशोधित वर्जन]