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"जहाँ न तेरी महक हो उधर न जाऊँ मैं / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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जहाँ न तेरी महक हो उधर न जाऊँ मैं <br>
 
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मेरी सरिश्त सफ़र है गुज़र न जाऊँ मैं  
 
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सरिश्त - स्वभाव , गुण
  
 
मेरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है <br>
 
मेरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है <br>

23:16, 16 दिसम्बर 2008 का अवतरण

शायर: निदा फ़ाज़ली

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जहाँ न तेरी महक हो उधर न जाऊँ मैं
मेरी सरिश्त सफ़र है गुज़र न जाऊँ मैं

सरिश्त - स्वभाव , गुण

मेरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है
मुझे सम्भाल के रखना बिखर न जाऊँ मैं

मेरे मिज़ाज में बे-मानी उलझनें हैं बहुत
मुझे उधर से बुलाना जिधर न जाऊँ मैं

कहीं पुकार न ले गहरी वादियों का सबूत
किसी मक़ाम पे आकर ठहर न जाऊँ मैं

न जाने कौन से लम्हे की बद-दुआ है ये
क़रीब घर के रहूँ और घर न जाऊँ मैं