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"तुम बिखर गए क्यों / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
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प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |एक और दिन / अवतार एनगिल }} <poem> अरे ओ ! मह...) |
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17:07, 23 जनवरी 2009 का अवतरण
अरे ओ !
महकती पत्तियों वाले
काले ग़ुलाब!
इतना तो बता दो
कि तनिक मुस्कराते ही
तुम
इस तरह
पत्ती-पत्ती
बिखर गये क्यों ?