भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बारिश के बाद / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (बारिश के बाद / अवतार एनगिल का नाम बदलकर बारिश के बाद / अवतार एन गिल कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=अवतार | + | |रचनाकार=अवतार एनगिल |
− | |एक और दिन / अवतार | + | |एक और दिन / अवतार एनगिल |
}} | }} | ||
<poem> | <poem> |
22:07, 23 जनवरी 2009 का अवतरण
लगातार बारिश के बाद
तमतमाया हुआ बंदी सूरज
निकला बाहर
बादल और धुंध को
सुनहरी डोरियों में लपेटा,
बाँधा उसने
बनाया गट्ठर
और देखते-देखते
ढलान पर दिया लुढ़का
ठीक तभी
उस चित्रकार ने
खिल- खिल हँसते हुए
धूप की कूची को
देवदारुओं के रंग में डुबोया
और पोत दिया यहाँ-वहाँ
कुनमुनाए---
घर, गली ,द्वार
सजग हुए
घाटी के लोग
अभी-अभी खेलने निकल आए
बच्चों के चेहरों पर
झिलमिलाती है
जोगिया धूप की आभा।