भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नया साल जब आया / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (नया साल जब आया / अवतार एनगिल का नाम बदलकर नया साल जब आया / अवतार एन गिल कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=अवतार | + | |रचनाकार=अवतार एनगिल |
− | |एक और दिन / अवतार | + | |एक और दिन / अवतार एनगिल |
}} | }} | ||
<poem> | <poem> |
22:09, 23 जनवरी 2009 का अवतरण
मैने नए नए साल से कहा
भूल जाओ
यात्राओं की यातना
फिलहाल जूते उतारो
गर्म पानी लो
धो लो पाँव
यह रहा तौलिया
पोंछ डालो
सूर्य से यहाँ तक
पहुँचने की थकान
वह मुस्कुराया
खिड़की तक आया
और पहली किरन के साथ
स्नानगृह में चला गया
जब हम
साथ- साथ, पास-पास बैठे
मैने उसे गिलास थमाया
और कहा—
हर्ज क्या है
गर कुछ पल
बहक भी जाएं हम?
‘मैं तो यात्री हूँ...
कहा उसने... और..... देखा मैने
कहीं नही था वह
मेज से द्वार
द्वार से आँगन
आँगन से सड़क तक
फैली थी
नये साल की
नयी धूप ।