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19:18, 4 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
जिन्दगी आहत है आँगन में
एक पानीपत है आँगन में
हर समय कुछ सीख देने की
बाप को आदत है आँगन में
हर समय तक ये बात शाश्वत है
नील नभ की छत है आँगन में
गर्भ की अपराधिनी ’बेटी’
सब की आगे नत है आँगन में
कल उसे सड़कें भी देखेंगी
जो महाभारत है आँगन में