भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
रचनाकार: [[बशीर बद्र]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=बशीर बद्र
 +
}}
 
[[Category:गज़ल]]
 
[[Category:गज़ल]]
[[Category:बशीर बद्र]]
+
<poem>
 +
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
 +
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
घने धुएँ में फ़रिश्ते भी आँखें मलते हैं
 +
तमाम रात खजूरों के पेड़ जलते हैं
  
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं <br>
+
मैं शाह राह नहीं, रास्ते का पत्थर हूँ
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं <br><br>
+
यहाँ सवार भी पैदल उतर कर चलते हैं
  
घने धुएँ में फ़रिश्ते भी आँखें मलते हैं <br>
+
उन्हें कभी न बताना मैं उनकी आँखें हूँ
तमाम रात खजूरों के पेड़ जलते हैं <br><br>
+
वो लोग फूल समझकर मुझे मसलते हैं
  
मैं शाह राह नहीं, रास्ते का पत्थर हूँ <br>
+
ये एक पेड़ है, आ इस से मिलकर रो लें हम
यहाँ सवार भी पैदल उतर कर चलते हैं <br><br>
+
यहाँ से तेरे मेरे रास्ते बदलते हैं
  
उन्हें कभी न बताना मैं उनकी आँखें हूँ <br>
+
कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से
वो लोग फूल समझकर मुझे मसलते हैं <br><br>
+
कहीं भी जाऊँ मेरे साथ साथ चलते हैं
 
+
</poem>
ये एक पेड़ है, आ इस से मिलकर रो लें हम <br>
+
यहाँ से तेरे मेरे रास्ते बदलते हैं <br><br>
+
 
+
कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से <br>
+
कहीं भी जाऊँ मेरे साथ साथ चलते हैं<br><br>
+

23:44, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं

घने धुएँ में फ़रिश्ते भी आँखें मलते हैं
तमाम रात खजूरों के पेड़ जलते हैं

मैं शाह राह नहीं, रास्ते का पत्थर हूँ
यहाँ सवार भी पैदल उतर कर चलते हैं

उन्हें कभी न बताना मैं उनकी आँखें हूँ
वो लोग फूल समझकर मुझे मसलते हैं

ये एक पेड़ है, आ इस से मिलकर रो लें हम
यहाँ से तेरे मेरे रास्ते बदलते हैं

कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से
कहीं भी जाऊँ मेरे साथ साथ चलते हैं