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"ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
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ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
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अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे
  
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे <br>
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हँसो आज इतना कि इस शोर में
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे <br><br>
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सदा सिसकियों की सुनाई न दे
  
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे <br>
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अभी तो बदन में लहू है बहुत
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे <br><br>
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हँसो आज इतना कि इस शोर में <br>
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मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
सदा सिसकियों की सुनाई न दे <br><br>
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ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे
  
अभी तो बदन में लहू है बहुत <br>
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ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
कलम छीन ले रौशनाई न दे <br><br>
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असीरों को ऐसी रिहाई न दे
  
मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो <br>
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मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहे
ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे <br><br>
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जहान से मदीना दिखाई न दे
  
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें <br>
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मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
असीरों को ऐसी रिहाई न दे <br><br>
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क़लम छीन ले रौशनाई न दे
  
मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहे <br>
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ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
जहान से मदीना दिखाई न दे <br><br>
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रहे सामने और दिखाई न दे
 
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मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ <br>
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ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है <br>
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रहे सामने और दिखाई न दे <br><br>
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00:01, 10 फ़रवरी 2009 का अवतरण

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रौशनाई न दे

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहे
जहान से मदीना दिखाई न दे

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रौशनाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे