भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
+ | |रचनाकार=बशीर बद्र | ||
+ | }} | ||
[[Category:गज़ल]] | [[Category:गज़ल]] | ||
− | + | <poem> | |
+ | दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे | ||
+ | उदासियों से भी चेहरा खिला-खिला ही लगे | ||
− | + | ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है | |
+ | कोई जो दूसरा ओढे़ तो दूसरा ही लगे | ||
− | + | नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही | |
− | + | ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे | |
− | + | अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है | |
− | + | मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है | + | |
− | मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे< | + |
15:29, 14 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे
उदासियों से भी चेहरा खिला-खिला ही लगे
ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा ओढे़ तो दूसरा ही लगे
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे
अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे