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"न जी भर के देखा न कुछ बात की / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
  
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कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
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कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
  
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उजालों की परियाँ नहाने लगीं
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की <br><br>
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नदी गुनगुनाई ख़यालात की
  
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं <br>
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मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की <br><br>
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ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की
  
उजालों की परियाँ नहाने लगीं <br>
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सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की <br><br>
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मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की
  
मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई <br>
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मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर'अब का
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की <br><br>
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बरसती हुई रात बरसात की
 
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सितारों को शायद ख़बर ही नहीं <br>
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मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर'अब का <br>
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बरसती हुई रात बरसात की <br><br>
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15:31, 14 फ़रवरी 2009 का अवतरण

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की

सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की

मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर'अब का
बरसती हुई रात बरसात की