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"मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारो
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ये कभी अपनी जफ़ा पर न हुआ शर्मिन्दा
हाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं <br><br>
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हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं
  
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उम्र भर जिनकी वफ़ाओं पे भरोसा कीजे
ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं <br><br>
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उम्र भर जिनकी वफ़ाओं पे भरोसा कीजे <br>
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वक़्त पड़ने पे वही लोग बदल जाते हैं <br><br>
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15:35, 14 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं

हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारो
ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं

ये कभी अपनी जफ़ा पर न हुआ शर्मिन्दा
हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं

उम्र भर जिनकी वफ़ाओं पे भरोसा कीजे
वक़्त पड़ने पे वही लोग बदल जाते हैं