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"वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
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16:06, 14 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब<ref>शैली</ref> समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब<ref>बुरा</ref> समझते होंगे
शब्दार्थ
<references/>