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"सिसकते आब में किस की सदा है / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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समेटो और सीने में छुपा लो
कोई दरिया की तह में रो रहा है <br><br>
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ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है
  
सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा <br>
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पके गेंहू की ख़ुश्बू चीखती है
ख़ुदा चरो तरफ़ बिखरा हुआ है <br><br>
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बदन अपना सुनेहरा हो चला है
  
समेटो और सीने में छुपा लो <br>
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हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है
ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है <br><br>
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समन्दर कैसा बूढ़ा देवता है
  
पके गेंहू की ख़ुश्बू चीखती है <br>
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हमारी शाख़ का नौ-ख़ेज़ पत्ता
बदन अपना सुनेहरा हो चला है <br><br>
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हवा के होंठ अक्सर चूमता है
  
हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है <br>
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मुझे उन नीली आँखों ने बताया
समन्दर कैसा बूढ़ा देवता है <br><br>
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तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है
 
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हमारी शाख़ का नौ-ख़ेज़ पत्ता <br>
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मुझे उन नीली आँखों ने बताया <br>
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तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है <br><br>
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16:12, 14 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

सिसकते आब में किस की सदा है
कोई दरिया की तह में रो रहा है

सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा
ख़ुदा चरो तरफ़ बिखरा हुआ है

समेटो और सीने में छुपा लो
ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है

पके गेंहू की ख़ुश्बू चीखती है
बदन अपना सुनेहरा हो चला है

हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है
समन्दर कैसा बूढ़ा देवता है

हमारी शाख़ का नौ-ख़ेज़ पत्ता
हवा के होंठ अक्सर चूमता है

मुझे उन नीली आँखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है