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"होंठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते <br>
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दिल उजड़ी हुई इक सराये की तरह है
साहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते<br><br>
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उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
आँखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते <br><br>
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फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
  
दिल उजड़ी हुई इक सराये की तरह है <br>
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इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते <br><br>
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ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते
  
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में <br>
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आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते <br><br><br>
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अहबाब = दोस्त, मित्र<br><br>
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16:16, 14 फ़रवरी 2009 का अवतरण

होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते

पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आँखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते

दिल उजड़ी हुई इक सराये की तरह है
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते

अहबाब<ref>दोस्त, मित्र</ref> भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते

शब्दार्थ
<references/>