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"मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ४" के अवतरणों में अंतर

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श्वाँस श्वाँस में रमा वही सब हलन चलन तेरी मधुकर
यश अपयश उत्थान पतन सब उस सच्चे रस का निर्झर
वही प्रेरणा क्षमता ममता प्रीति पुलक उल्लास वही
टेर रहा है व्यक्ताव्यक्ता मुरली तेरा मुरलीधर।।31।।

कर्णफूल दृग द्युति वह तेरी सिंदूरी रेखा मधुकर
वही हृदय माला प्राणों की वीणा की झंकृति निर्झर
वही सत्य का सत्य तुम्हारे जीवन का भी वह जीवन
टेर रहा है परमानन्दा मुरली तेरा मुरलीधर ।। 32।।

रह लटपट उसको पलकों की ओट न होने दे मधुकर
मिलन गीत गाता लहराता बहा जा रहा रस निर्झर
तुम उसकी हो प्राणप्रिया परमातिपरम सौभाग्य यही
टेर रहा है हृदयोल्लासिनि मुरली तेरा मुरलीधर।।33।।

मृदुल मृणाल भाव अंगुलि से छू मन प्राण बोध मधुकर
रोम रोम में लहरा देता वह अचिंत्य लीला निर्झर
मधुराधर स्वर सुना विहॅंसता वह प्रसन्न मुख वनमाली
टेर रहा है सर्वमंगला मुरली तेरा मुरलीधर।।34।।

नारकीय योनियाँ अनेकों रौरव नर्क पीर मधुकर
उसके संग संग ले सह ले सब उसका लीला निर्झर
रहना कहीं बनाये रखना उसको आँखों का अंजन
टेर रहा है सर्वशिखरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।35।।

प्राणेश्वर के संग संग ही कुंज कुंज वन वन मधुकर
डोल डोल हरि रंग घोल अनमोल बना ले मन निर्झर
शेश सभी मूर्तियाँ त्याग सच्चे प्रियतम के पकड़ चरण
टेर रहा है सर्वशोभना मुरली तेरा मुरलीधर।।36।।

छवि सौन्दर्य सुहृदता सुख का सदन वही सच्चा मधुकर
कर्म भोग दुख स्वयं झेल लो हों न व्यथित प्रियतम निर्झर
तुम आनन्द विभोर करो नित प्रभु सुख सरि में अवगाहन
टेर रहा है प्राणपोषिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।37।।

ललित प्राणवल्लभ की कोमल गोद मोदप्रद है मधुकर
प्रियतम की मृणाल बाँहें ही सुख सौभाग्य सेज निर्झर
प्रेम अवनि वह पवन प्रेम जल प्रेम वह्नि गिरि नभ सागर
टेर रहा है प्रेमाकारा मुरली तेरा मुरलीधर।।38।।

डूब कृष्ण स्मृति रस में मानस मधुर कृष्णमय कर मधुकर
बहने दे उर कृष्ण अवनि पर कल कल कृष्ण कृष्ण निर्झर
सब उसका ही असन आभरण शयन जागरण हास रुदन
टेर रहा है सर्वातिचेतना मुरली तेरा मुरलीधर।।39।।

हृदय कुंज में परम प्रेममय निर्मित अम्बर मधुकर
उसी परिधि में विहर तरंगित सर्वशिरोमणि रस निर्झर
इस अम्बर से भी विशाल वह प्रेमाम्बर देने वाला
टेर रहा है विश्ववंदिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।40।।