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"मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ३" के अवतरणों में अंतर

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सो कर नहीं बिता वासर दिन  रात जागता रह मधुकर  
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मंदस्मित करुणा रसवर्षी वह अद्भुत बादल मधुकर  
जो सोता वह  खो देता है मरुथल में जीवन निर्झर  
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मृदु करतल सहला सहला सिर हरता प्राण व्यथा निर्झर  
सर्वसमर्पित कर इस क्षण ही साहस कर मिट जा मिट जा
+
मनोहारिणी चितवन से सर्वस्व तुम्हारा हर मनहर
टेर रहा सर्वार्तिभंजिनी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।21।।
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टेर रहा है उरविहारिणी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।11।।
  
सोच रहा क्या देख देख कितना प्यारा मनहर मधुकर  
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विविध भाव सुमनों की अपनी सजने दे क्यारी मधुकर  
मात्र टकटकी बाँध देखते  उमड़ पड़ेगा रस निर्झर  
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कोना कोना सराबोर कर बहे वहाँ सच्चा निर्झर  
जीवन के प्रति रागरंग का तुम्हें सुना संगीत ललित
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वह तेरे सारे सुमनों का रसग्राही आनन्दपथी
टेर रहा है मंजुमोहिनी  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।22।।
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टेर रहा सर्वांतरात्मिका मुरली  तेरा    मुरलीधर।।12।।
  
देख रहा जो उसे देखने का संयोग  बना मधुकर  
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मॅंडराते आनन पर तेरे उसके कंज नयन मधुकर  
दिशा शून्य चेतना खोज ले रासविहारी रस निर्झर
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तृषित चकोरी सदृश देख तू उसका मुख मयंक निर्झर  
पर से निज पर ही निज दृग की फेर चपल चंचल पुतली
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युगल करतलों में रख आनन कर निहाल तुमको अविकल
टेर रहा स्वात्मानुसंधिनी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।23।।
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टेर रहा है मन्मथमथिनी मुरली तेरा   मुरलीधर।।13।।
  
तेरे अधरों का गुंजन वह गीत वही स्वर वह मधुकर  
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सब प्रकार मेरे मेरे हो गदगद उर कह कह मधुकर  
उसे निहार निहाल बना ले पंकिल नयनों का निर्झर  
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युग युग से प्यासे प्राणों में देता ढाल सुधा निर्झर  
थक थक बैठ गया तू फिर भी भेंज रहा वह संदेशा
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भरिता कर देता रिक्ता को बिना दिये तुमको अवसर
टेर रहा है शतावर्तिनी  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।24।।
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टेर रहा है नादविग्रहा मुरली  तेरा    मुरलीधर।।14।।
  
अपने मन में ही प्रविष्ट नित कर ले उसका मन मधुकर  
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माँग माँग फैला कर अंचल बिलख विधाता से मधुकर  
बस उसके मन का ही रसमय झर झर झरने दे निर्झर
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लहरा दे कुरुप जीवन में वह अभिनव सुषमा निर्झर  
जग प्रपंच को छीन तुम्हारा मन कर देगा बरसाना
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उसकी लीला वही जानता ढरकाता रस की गगरी
टेर रहा है उरनिकुंजिनी  मुरली  तेरा  मुरलीधर।।25।।
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टेर रहा है प्रेमभिक्षुणि मुरली  तेरा    मुरलीधर।।15।।
 
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सबसे सकता भाग स्वयं से भाग कहाँ सकता मधुकर
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भाग भाग कर रीता ही रीता रह जायेगा निर्झर
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कुछ होने कुछ पा जाने की आशा में बॅंध मर न विकल
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टेर रहा स्वात्मानुशिलिनी  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।26।।
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यदि तोड़ना मूढ़ कुछ है तो तोड़ स्वमूर्च्छा ही मधुकर
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जड़ताओं के तृण तरु दल से रुद्ध प्राण जीवन निर्झर
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शुचि जागरण सुमन परिमल से सुरभित कर जीवन पंकिल
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टेर रहा है पूर्णानन्दा  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।27।।
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क्या ‘मैं’ के अतिरिक्त उसे तूँ अर्पित कर सकता मधुकर
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शेष तुम्हारे पास छोड़ने को क्या बचा विषय निर्झर
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‘मैं’ का केन्द्र बचा कर पंकिल कुछ देना भी क्या देना
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टेर रहा अहिअहंमर्दिनी  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।28।।
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किसे मिटाने चला स्वयं का ‘मैं’ ही मार मलिन मधुकर
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एकाकार तुम्हारा उसका फिर हो जायेगा निर्झर
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शब्द शून्यता में सुन कैसी मधुर बज रही है वंशी
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टेर रहा विक्षेपनिरस्ता  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।29।।
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क्षुधा पिपासा व्याधि व्यथा विभुता विपन्नता में मधुकर
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स्पर्श कर रहा वही परमप्रिय सच्चा विविध वर्ण निर्झर  
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वही वही संकल्पधनी है सतरंगी झलमल झलमल
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टेर रहा है सर्वगोचरा  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।30।।
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15:12, 16 अप्रैल 2009 का अवतरण

 
 
मंदस्मित करुणा रसवर्षी वह अद्भुत बादल मधुकर
मृदु करतल सहला सहला सिर हरता प्राण व्यथा निर्झर
मनोहारिणी चितवन से सर्वस्व तुम्हारा हर मनहर
टेर रहा है उरविहारिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।11।।

विविध भाव सुमनों की अपनी सजने दे क्यारी मधुकर
कोना कोना सराबोर कर बहे वहाँ सच्चा निर्झर
वह तेरे सारे सुमनों का रसग्राही आनन्दपथी
टेर रहा सर्वांतरात्मिका मुरली तेरा मुरलीधर।।12।।

मॅंडराते आनन पर तेरे उसके कंज नयन मधुकर
तृषित चकोरी सदृश देख तू उसका मुख मयंक निर्झर
युगल करतलों में रख आनन कर निहाल तुमको अविकल
टेर रहा है मन्मथमथिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।13।।

सब प्रकार मेरे मेरे हो गदगद उर कह कह मधुकर
युग युग से प्यासे प्राणों में देता ढाल सुधा निर्झर
भरिता कर देता रिक्ता को बिना दिये तुमको अवसर
टेर रहा है नादविग्रहा मुरली तेरा मुरलीधर।।14।।

माँग माँग फैला कर अंचल बिलख विधाता से मधुकर
लहरा दे कुरुप जीवन में वह अभिनव सुषमा निर्झर
उसकी लीला वही जानता ढरकाता रस की गगरी
टेर रहा है प्रेमभिक्षुणि मुरली तेरा मुरलीधर।।15।।