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"मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ५" के अवतरणों में अंतर

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सोच अरे बावरे कर्म से ही तो बना जगत मधुकर  
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सो कर नहीं बिता वासर दिन  रात जागता रह मधुकर  
चल उसके संग रच एकाकी एक प्रीति पंकिल निर्झर
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जो सोता वह  खो देता है मरुथल में जीवन निर्झर  
प्राण कदंब छाँव में कोमल भाव सुमन की सेज बिछा
+
सर्वसमर्पित कर इस क्षण ही साहस कर मिट जा मिट जा
टेर रहा सुखसृष्टिविधाना  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।41।।
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टेर रहा सर्वार्तिभंजिनी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।21।।
  
रख निश्शब्द स्नेह से उसके आनन पर आनन मधुकर  
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सोच रहा क्या देख देख कितना प्यारा मनहर मधुकर  
भर ले रिक्त हृदय की गागर उमड़ा सच्चा रस निर्झर  
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मात्र टकटकी बाँध देखते  उमड़ पड़ेगा रस निर्झर  
प्राणों से प्राणों का पंकिल चलने दे संवाद सरस
+
जीवन के प्रति रागरंग का तुम्हें सुना संगीत ललित
टेर रहा है संवादसर्जिनी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।42।।
+
टेर रहा है मंजुमोहिनी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।22।।
  
सुमन सुमन प्रति कलिका कलिका मँडराता फिरता मधुकर  
+
देख रहा जो उसे देखने का संयोग  बना मधुकर  
क्षुधा पिपासा मिटी न युग से भटक रहा है तू निर्झर  
+
दिशा शून्य चेतना खोज ले रासविहारी रस निर्झर
तू मन का मन नहीं तुम्हारा खंड खंड में फंसा चपल  
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पर से निज पर ही निज दृग की फेर चपल चंचल पुतली
टेर रहा है क्लेशनाशिनी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।43।।
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टेर रहा स्वात्मानुसंधिनी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।23।।
  
फेरा तेरा जन्म जन्म का मिटा नहीं लम्पट मधुकर
+
तेरे अधरों का गुंजन वह गीत वही स्वर वह मधुकर  
अभीं और कितना भटकेगा इस निर्झर से उस निर्झर  
+
उसे निहार निहाल बना ले पंकिल नयनों का निर्झर  
बहिर्मुखी गुंजन से तेरी भग्न हुई जीवन वीणा
+
थक थक बैठ गया तू फिर भी भेंज रहा वह संदेशा
टेर रहा है प्राणगुंजिनी  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।44।।
+
टेर रहा है शतावर्तिनी  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।24।।
  
किया न अवलोकन अंतर्मुख मौन शान्त मानस मधुकर
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अपने मन में ही प्रविष्ट नित कर ले उसका मन मधुकर  
शान्त चित्त में ही विलीन हो पाता अहंकार निर्झर
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बस उसके मन का ही रसमय झर झर झरने दे निर्झर  
सुन विचार शून्यता बीच निज प्रियतम की पदचाप मधुर
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जग प्रपंच को छीन तुम्हारा मन कर देगा बरसाना
टेर रहा है शांतिसागरा  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।45।।
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टेर रहा है उरनिकुंजिनी मुरली  तेरा  मुरलीधर।।25।।
 
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जाग न जाने कब वह आकर खटका देगा पट मधुकर  
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सतत सजगता से ही निर्जल होता अहमिति का निर्झर
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मूढ़ विस्मरण में निद्रा में मिलन यामिनी दे न बिता
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टेर रहा विस्मरणविनाशा  मुरली  तेरा  मुरलीधर।।46।।
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क्या स्वाधीन कभीं रह सकता क्षुद्र भोग भोगी मधुकर
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क्षणभंगुर वासना बीच बहता न प्रीति का रस निर्झर  
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भरा भरा भटकता बावरे रिक्त न निज को किया कभीं
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टेर रहा रिक्तान्तरालया  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।47।।
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बड़भागी हो सुन सच्चे का कितना प्यारा स्वर मधुकर
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जाते जहाँ वहीं बह जाता गुनगुन गीतों का निर्झर
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और मिले कुछ मिले न जग में बस अक्षय धन कृष्ण स्मरण
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टेर रहा प्रभुसम्पदालया  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।48।।
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अहोभाग्य तुमको ज्योतिर्मय करता है दिनमणि मधुकर
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नहलाता मनहर रजनी में उसका राकापति निर्झर
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धन्य धन्य तुमको प्रियतम का दुलराता तारा मंडल
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टेर रहा है विश्वंभरिणी  मुरली  तेरा   मुरलीधर।।49।।
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सुमनों की मधु सुरभि धार में तुम्हें बुलाता वह मधुकर
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वासंती किसलय में तेरे लिये लहरता रस निर्झर
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कली कली प्रति गली गली में रहा पुकार गंधमादन
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टेर रहा है सर्वमूर्तिणी   मुरली  तेरा    मुरलीधर।।50।।
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15:14, 16 अप्रैल 2009 का अवतरण

 

सो कर नहीं बिता वासर दिन रात जागता रह मधुकर
जो सोता वह खो देता है मरुथल में जीवन निर्झर
सर्वसमर्पित कर इस क्षण ही साहस कर मिट जा मिट जा
टेर रहा सर्वार्तिभंजिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।21।।

सोच रहा क्या देख देख कितना प्यारा मनहर मधुकर
मात्र टकटकी बाँध देखते उमड़ पड़ेगा रस निर्झर
जीवन के प्रति रागरंग का तुम्हें सुना संगीत ललित
टेर रहा है मंजुमोहिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।22।।

देख रहा जो उसे देखने का संयोग बना मधुकर
दिशा शून्य चेतना खोज ले रासविहारी रस निर्झर
पर से निज पर ही निज दृग की फेर चपल चंचल पुतली
टेर रहा स्वात्मानुसंधिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।23।।

तेरे अधरों का गुंजन वह गीत वही स्वर वह मधुकर
उसे निहार निहाल बना ले पंकिल नयनों का निर्झर
थक थक बैठ गया तू फिर भी भेंज रहा वह संदेशा
टेर रहा है शतावर्तिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।24।।

अपने मन में ही प्रविष्ट नित कर ले उसका मन मधुकर
बस उसके मन का ही रसमय झर झर झरने दे निर्झर
जग प्रपंच को छीन तुम्हारा मन कर देगा बरसाना
टेर रहा है उरनिकुंजिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।25।।