भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - १३" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ }} <poem> आह्लादित अंतर वसुंध...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’
+
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'}}
 +
{{KKPageNavigation
 +
|पीछे=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' पृष्ठ 12
 +
|आगे=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' पृष्ठ 14
 +
|सारणी=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
 
}}
 
}}
<poem>  
+
<poem>
+
 
आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले मधुकर  
 
आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले मधुकर  
 
भावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला निर्झर  
 
भावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला निर्झर  

22:20, 3 मई 2009 का अवतरण

आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले मधुकर
भावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला निर्झर
पिन्हा ग्रीव में आत्मसमर्पण कर होती कृतार्थ धरणी
टेर रहा सर्वस्वस्वीकृता मुरली तेरा मुरलीधर।।61।।

अगरु धूम से उड़े जा रहे अम्बर में जलधर मधुकर
सुर धनु की पहना देते उसको चपला माला निर्झर
नीर बरस कर अर्घ्य आरती करती घन विद्युत माला
टेर रहा मधुरामनुहारा मुरली तेरा मुरलीधर।।62।।

तुच्छ न कह ठुकराना वाला वह तेरा अर्पण मधुकर
लघु पद सरिता को भी उर में भरता विशद सिंधु निर्झर
लतिकाओं की वेदी में खेला करते लघु ललित सुमन
टेर रहा प्रतिकणक्षणपर्वा मुरली तेरा मुरलीधर।।63।।

जड़ पारसमणि छू लोहा भी कुंदन हो जाता मधुकर
प्राणनाथ सच्चा प्रियतम तो परम चेतना का निर्झर
स्नेहमयी ममता से तुमको सटा हृदय से हृदयेश्वर
टेर रहा परिवर्तनप्राणा मुरली तेरा मुरलीधर।।64।।

भले चपल अलि कुटिल कलुषमय पर उसका ही तू मधुकर
सभी निर्धनों का धन वह सब असहायों का बल निर्झर
लांछित होकर भी न हिरण को कभीं त्याग देता हिमकर
टेर रहा स्वजनाश्रयशीला मुरली तेरा मुरलीधर।।65।।