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"मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - १४" के अवतरणों में अंतर

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अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकर  
 
अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकर  
 
जब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झर  
 
जब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झर  

22:21, 3 मई 2009 का अवतरण

अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकर
जब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झर
उसका कौन पता बतलाये नाम रुप गति अकथ कथा
टेर रहा करुणासाध्या मुरली तेरा मुरलीधर।।66।।

क्या कण कण वासी अनन्त का अन्वेषण संभव मधुकर
स्वयं भावना समझ करुण वह पास उतर आता निर्झर
चन्द्र दिवाकर स्वयं कृपाकर करते ज्योर्तिमय त्रिभुवन
टेर रहा स्वजनांकमालिका मुरली तेरा मुरलीधर।।67।।

तृषित चंचु चातक तुम सच्चा स्वाति मेघ माला मधुकर
तुम पतझर पूरित कानन वह प्रियतम वासंती निर्झर
तुम चकोर वह चंद्र मयूरी तुम वह श्रावण जलज सजल
टेर रहा अंतराकर्षिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।68।।

रोता गगन बिलखती धरती दहक रहा पावक मधुकर
उबल रहा पाथोधि प्रकम्पित मारुत का अंतर निर्झर
उद्वेलित वन खग पुकारते वह सच्चा प्राणेश कहाँ
टेर रहा है पीरप्रणयिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।69।।

प्रभु तुमको जानते अपर फिर जाने मत जाने मधुकर
तेरा सच्चा से परिचय फिर मिले न मिले अपर निर्झर
उस हृदयस्थ परम प्रियतम की चरण शरण ही कल्याणी
टेर रहा करुणापयोधरा मुरली तेरा मुरलीधर।।70।।