भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - १७" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ }} <poem> कोटि काम सुन्दर गुण ...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’
+
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'}}
 +
{{KKPageNavigation
 +
|पीछे=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' पृष्ठ 16
 +
|आगे=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' पृष्ठ 18
 +
|सारणी=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
 
}}
 
}}
<poem>  
+
<poem>
+
 
कोटि काम सुन्दर गुण मन्दिर कोटि कला नायक मधुकर  
 
कोटि काम सुन्दर गुण मन्दिर कोटि कला नायक मधुकर  
 
अपने हृदयेश्वर के आगे थिरक थिरक नाचो निर्झर  
 
अपने हृदयेश्वर के आगे थिरक थिरक नाचो निर्झर  

22:24, 3 मई 2009 का अवतरण

कोटि काम सुन्दर गुण मन्दिर कोटि कला नायक मधुकर
अपने हृदयेश्वर के आगे थिरक थिरक नाचो निर्झर
उर वृन्दावन चारी को मन दे उनके मन वाला बन
टेर रहा गठबंधनोत्सुका मुरली तेरा मुरलीधर।।81।।

पतिव्रतरता कीर्ति वनिता पुंश्चली नहीं प्रमदा मधुकर
एक मात्र सच्चे प्रभु का ही उसने किया वरण निर्झर
उसकी आशा छोड़ ललक कर जीवन धन का आलिंगन
टेर रहा पुरुषोत्तमाश्रया मुरली तेरा मुरलीधर।।82।।

आँख बिछा दे इसी मार्ग से आने वाला है मधुकर
छलक छलक फिर फिर भरने दे व्याकुल विरह नयन निर्झर
वह आँखों में आँख डालकर रस धाराधर मंद हसन
टेर रहा है स्नेहस्निग्धिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।83।।

सच्चे में सब भाॅंति समाहित सदा तुम्हारा हित मधुकर
डूब उसी में वहीं तरंगित अद्भुत मोहन रस निर्झर
मत तट पर रुक बह धारा में उसकी लहरों बीच बिछल
टेर रहा अंतस्तरंगिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।84।।

जीवन जीर्ण तरी सागर में हिचकोले खाती मधुकर
बिन पतवार न कोई खेवनहार अथाह प्रलय निर्झर
विषम काल में परम हितैशी सच्चा दुख दारिद्र्य दमन
टेर रहा है कल्पविटपिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।85।।