"मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - १८" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ }} <poem> वह अनकहे स्नेह चितवन...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=प्रेम नारायण | + | |रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'}} |
+ | {{KKPageNavigation | ||
+ | |पीछे=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' पृष्ठ 17 | ||
+ | |आगे=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' पृष्ठ 19 | ||
+ | |सारणी=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' | ||
}} | }} | ||
− | <poem> | + | <poem> |
− | + | ||
वह अनकहे स्नेह चितवन से उर में धँस जाता मधुकर | वह अनकहे स्नेह चितवन से उर में धँस जाता मधुकर | ||
इस जीवन के महाकाव्य की सबसे सरस पंक्ति निर्झर | इस जीवन के महाकाव्य की सबसे सरस पंक्ति निर्झर |
22:27, 3 मई 2009 का अवतरण
वह अनकहे स्नेह चितवन से उर में धँस जाता मधुकर
इस जीवन के महाकाव्य की सबसे सरस पंक्ति निर्झर
जन अंतर के रीते घट में भरता पल पल सुधा सलिल
टेर रहा है विभवभूषणा मुरली तेरा मुरलीधर।।86।।
मरना उसके लिये उसी के हित ही हो जीना मधुकर
उसको ही ले तैर उसी को ले कर डूब यहाँ निर्झर
कंध देश पर रख तुमको परिरंभण में ले बचा बचा
टेर रहा सौभाग्यवर्धिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।87।।
अंगुलि से पोंछता कपोलों पर ढुलकते अश्रु मधुकर
निज अम्बर से ढंक देता सिहरता तुम्हारा तन निर्झर
श्वांसों से भी अति समीप आ आलिंगन में बाँध तुम्हें
टेर रहा है भावविभोरा मुरली तेरा मुरलीधर।।88।।
किसे पता कब डूब जाय यह कागज की नौका मधुकर
पहले उससे मिल ले पीछे जो इच्छा हो कर निर्झर
प्राण विहंगम विषम पींजरे में छटपटा रहा कब से
टेर रहा मुक्तअम्बरा मुरली तेरा मुरलीधर।।89।।
बॅंध जाना बाँधना भली विधि उसने सीखा है मधुकर
हिला मृदुल दूर्वा दल अंगुलि बुला रहा पल पल निर्झर
पर्वत पर्वत शिखर शिखर पर गुंजित कर सस्वर वंशी
टेर रहा है स्नेहिलरागा मुरली तेरा मुरलीधर।।90।।