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"कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है / शकील बँदायूनी" के अवतरणों में अंतर

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कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है <br>
 
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रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है <br><br>
 
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है <br><br>

14:35, 8 मई 2009 का अवतरण

कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है

आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है

छुप के रोता हूँ तेरी याद में दुनिया भर से
कब मेरी आँख से बरसात नहीं होती है

हाल-ए-दिल पूछने वाले तेरी दुनिया में कभी
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है

जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कैसे हो "शकील"
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है