भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है / शकील बँदायूनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=शकील बँदायूनी | |
− | + | |संग्रह= | |
− | + | }} | |
− | + | ||
− | + | ||
कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है <br> | कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है <br> | ||
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है <br><br> | रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है <br><br> |
14:35, 8 मई 2009 का अवतरण
कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है
छुप के रोता हूँ तेरी याद में दुनिया भर से
कब मेरी आँख से बरसात नहीं होती है
हाल-ए-दिल पूछने वाले तेरी दुनिया में कभी
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है
जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कैसे हो "शकील"
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है