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"याद आए तो आँख भर आए / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर

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याद आए तो आँख भर आए
 
याद आए तो आँख भर आए
  

13:56, 10 मई 2009 के समय का अवतरण

याद आए तो आँख भर आए

किन ज़मानों से हम गुज़र आए।


पाँव में दम ज़रा रहे बाकी

क्या पता कैसा कल सफर आए।


उसने चढ़ ली है ऐसी ऊँचाई

गैर मुमकिन है वो उतर आए।


सबके चेहरे पे कुछ खुशी आये

आए कैसे भी वो, मगर आए।


हमने पहले न कम सुनी खब़रें

जो भी आनी हो अब खब़र आए।


आसमां भी उदास रहता है

सोचता है ज़मीन पर आए।