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"दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा <br>
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यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें<br><br>
 
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तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करें<br><br>
 
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क्या शमा के नहीं है हवा ख़्वाह अहल-ए-बज़्म<br>
 
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हो ग़म ही जां गुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें<br><br>
 
हो ग़म ही जां गुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें<br><br>

01:39, 22 मई 2009 का अवतरण

दोनों जहाँ दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें

थक-थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गये
तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करें

क्या शमा के नहीं है हवा ख़्वाह अहल-ए-बज़्म
हो ग़म ही जां गुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें