भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कहीं गरजे कहीं बरसे / श्यामनन्दन किशोर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर | |
− | + | }} | |
− | + | ||
− | + | ||
बहुत दिन तक बड़ी उम्मीद से देखा तुम्हें जलधर,<br> | बहुत दिन तक बड़ी उम्मीद से देखा तुम्हें जलधर,<br> | ||
मगर क्या बात है ऎसी, कहीं गरजे कहीं बरसे ।<br><br> | मगर क्या बात है ऎसी, कहीं गरजे कहीं बरसे ।<br><br> |
16:28, 24 मई 2009 का अवतरण
बहुत दिन तक बड़ी उम्मीद से देखा तुम्हें जलधर,
मगर क्या बात है ऎसी, कहीं गरजे कहीं बरसे ।
जवानी पूछती मुझसे बुढ़ापे की कसम देकर,
कहो क्यों पूजते पत्थर रहे तुम देवता कहकर ।
कहीं तो शोख सागर है मचलता भूल मर्यादा,
कहीं कोई अभागिन चातकी दो बूँद को तरसे ।
किसी निष्ठुर हृदय की याद आती जब निशानी की,
मुझे तब याद आती है कहानी आग-पानी की ।
किसी उस्ताद तीरन्दाज़ के पाले पड़ा जीवन,
निशाने साधता दो-दो पुराने एक ही शर से ।
नहीं जो मंदिरों में है, वही केवल पुजारी है,
सभी को बाँटता जो है, कहीं वह भी भिखारी है ।
प्रतीक्षा में जगा जो भोर तक तारा, मिटा-डूबा
जगाता पर अरूण सोए कमल-दल को किरण-कर से।