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"किसी रंजिश को हवा दो / सुदर्शन फ़ाकिर" के अवतरणों में अंतर

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किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी <br>
 
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मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी<br><br>  
 
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी<br><br>  

16:35, 24 मई 2009 का अवतरण

किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

मेरे रुकने से मेरी साँसे भी रुक जायेंगी
फ़ासले और बड़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

ज़हर पीने की तो आदत थी ज़मानेवालो
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है 'फ़ाकिर'
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी