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"जब भी तन्हाई से घबरा के / सुदर्शन फ़ाकिर" के अवतरणों में अंतर

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जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं <br>
 
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हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं<br><br>  
 
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं<br><br>  

16:36, 24 मई 2009 का अवतरण

जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं

उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है
वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं

हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह
तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं