भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं.. / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः मुनव्वर राना Category:कविताएँ Category:मुनव्वर राना ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार =मुनव्वर राना | |
− | [[Category: | + | }} |
− | + | [[Category:ग़ज़ल]] | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं | गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं | ||
17:05, 24 मई 2009 का अवतरण
गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे मायें रोज़ आती हैं
अभी रोशन हैं चाहत के दिये हम सबकी आँखों में
बुझाने के लिये पागल हवायें रोज़ आती हैं
कोई मरता नहीं है हाँ मगर सब टूट जाते हैं
हमारे शहर में ऎसी वबायें रोज़ आती हैं
अभी दुनिया की चाहत ने मिरा पीछा नहीं छोड़ा
अभी मुझको बुलाने दाश्तायें रोज़ आती हैं
ये सच है नफ़रतों की आग ने सब कुछ जला डला
मगर उम्मीद की ठंडी हवायें रोज़ आती हैं
वबायें= बीमारियाँ; दाश्तायें=रखैलें