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"पहला सलाम / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर
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कैसे भूलूँ किसी का वो पहला सलाम<br> | कैसे भूलूँ किसी का वो पहला सलाम<br> |
18:27, 25 मई 2009 के समय का अवतरण
एक रंगीन झिझक एक सादा पयाम
कैसे भूलूँ किसी का वो पहला सलाम
फूल रुख़्सार के रसमसाने लगे
हाथ उठा क़दम डगमगाने लगे
रंग-सा ख़ाल-ओ-ख़द से छलकने लगा
सर से रंगीन आँचल ढलकने लगा
अजनबियत निगाहें चुराने लगी
दिन धड़कने लगा लहर आने लगी
साँस में इक गुलाबी गिरह पड़ गई
होंठ थरथराये सिमटे नज़र गड़ गई
रह गया उम्र भर के लिये ये हिजाब
क्यों न संभला हुआ दे सका मैं जवाब
क्यों मैं बे-क़स्द बे-अज़्म बे-वास्ता
दूसरी सम्त घबरा के तकने लगा