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"पतझर का झरना देखो तुम / चंद्र कुमार जैन" के अवतरणों में अंतर
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इस तन का श्रृंगार किया है !<br> | इस तन का श्रृंगार किया है !<br> |
18:33, 25 मई 2009 के समय का अवतरण
मधु-मादक रंगों ने बरबस,
इस तन का श्रृंगार किया है !
रंग उसी के हिस्से आया,
जिसने मन से प्यार किया है !
वासंती उल्लास को केवल,
फागुन का अनुराग न समझो !
ढोलक की हर थाप को केवल,
मधुऋतु की पदचाप न समझो !!
भीतर से जो खुला उसी ने,
जीवन का मनुहार किया है !
रंग उसी के हिस्से...
पतझर में देखो झरना तुम,
फिर वसंत का आना देखो !
पीड़ा में जीवन की क्रीड़ा,
आँसू में मुस्काना देखो !!
सुख-दुख में यदि भेद नहीं है,
समझो जीवन पूर्ण जिया है !
रंग उसी के हिस्से...