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"बारिश हुई तो / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गये<br>
 
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गये<br>
 
मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गये<br><br>
 
मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गये<br><br>

18:50, 25 मई 2009 का अवतरण

बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गये
मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गये

बादल को क्या ख़बर कि बारिश की चाह में
कितने बुलन्द-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गये

जुगनू को दिन के वक़्त पकड़ने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गये

लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गये

सूरज दिमाग़ लोग भी इब्लाग़-ए-फ़िक्र में
ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-फ़िराक़ के पेचाक हो गये

जब भी ग़रीब-ए-शहर से कुछ गुफ़्तगू हुई
लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गये

साहिल पे जितने आबगुज़ीदा थे सब के सब
दरिया के रुख़ बदलते ही तैराक हो गये