भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शाम आयी तेरी यादों के / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | रचनाकार | + | {{KKRachna |
− | + | |रचनाकार=परवीन शाकिर | |
− | [[Category: | + | }} |
− | + | [[Category:ग़ज़ल]] | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले<br> | शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले<br> | ||
रंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले<br><br> | रंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले<br><br> |
18:52, 25 मई 2009 का अवतरण
शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले
रंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले
रक्स जिनका हमें साहिल से बहा लाया था
वो भँवर आँख तक आये तो क़िनारे निकले
वो तो जाँ ले के भी वैसा ही सुबक-नाम रहा
इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले
इश्क़ दरिया है जो तैरे वो तिहेदस्त रहे
वो जो डूबे थे किसी और क़िनारे निकले
धूप की रुत में कोई छाँव उगाता कैसे
शाख़ फूटी थी कि हमसायों में आरे निकले
सुबक-नाम = जिसका नाम न लिया जाये; तिहेदस्त= खाली हाथ